सोहर, संतान के जन्म के बाद गाया जाने वाला मंगल गीत है. संतान के जन्म से संबंधित अवसरों जैसे छठिहारी, सतैसा, सतमासा आदि में इस मंगल गीत की धुन गुनगुनाई जाती है. इन गीतों में संतान के जन्म और उसके उपरांत होने वाले उत्सवों का सुंदर वर्णन किया गया है.
कृष्ण जन्म और राम जन्म की कथाओं को भी सोहरों में कुछ यूं वर्णन किया जाता है, जैसे वो कोई ईश्वर नहीं बल्कि हंसते खेलते, श्याम सलोने नन्हें बालक हों. गाए जाने वाले सोहरों का प्रकार क्षेत्र और समाज के अनुसार बदलता है. कई क्षेत्रों में राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन जन्माष्टमी में भी सोहर के गाने की परंपरा है.
प्रस्तुत है आपके सामने एक ऐसा ही गीत. एक ऐसा सोहर, जिसमें संतान प्राप्ति के बाद घर में होने वाले उल्लास और घरवालों की भावनाओ का बड़ी बारीकी से वर्णन किया गया है...
जुग जुग जियसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो
ललना लाल होइहे, कुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो॥
आज के दिनवा सुहावन, रतिया लुभावन हो,
ललना दिदिया के होरिला जनमले, होरिलवा बडा सुन्दर हो॥
नकिया त हवे जैसे बाबुजी के, अंखिया ह माई के हो
ललन मुहवा ह चनवा सुरुजवा त सगरो अन्जोर भइले हो॥
सासु सुहागिन बड भागिन, अन धन लुटावेली हो
ललना दुअरा पे बाजेला बधइया, अन्गनवा उठे सोहर हो॥
नाची नाची गावेली बहिनिया, ललन के खेलावेली हो
ललना हंसी हंसी टिहुकी चलावेली, रस बरसावेली हो॥
जुग जुग जियसु ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो
ललना लाल होइहे, कुलवा के दीपक मनवा में आस लागल हो॥
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