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लोकसंस्कृति: भारत की आत्मा

26 जनवरी याद है? सब तरफ उत्सव का माहौल होता है। हो भी क्यों ना, इसी दिन हमारे देश में अपना संविधान जो लागू हुआ था। हमने असली मायनों में आजादी पाई थी। हर साल की तरह इस साल भी टीवी पर नई दिल्ली की राष्ट्रीय परेड चल रही थी जिसमें अलग अलग राज्यों की खूबसूरत झांकियो ने शिरकत की थी। यूपी की झांकी में राम मंदिर का प्रतिचित्र था तो असम की झांकी में उसकी प्राकृतिक छटा और चाय बागानों को प्रदर्शित किया गया था। छत्तीसगढ़ ने अपने लोकगीतों को दर्शाया तो अरुणाचल प्रदेश ने अपनी हस्तकला को। सभी राज्य अपनी-अपनी लोक संस्कृति को दुनिया के सामने पेश कर रहे थें, जो निश्चित ही हमारे सुंदर और समृद्ध भारत का प्रतिरूप है।

आखिर ये लोक संस्कृति है क्या? लोक संस्कृति वह संस्कृति है, जिसका संबंध आम लोगों से है। जो निश्चित क्षेत्र विशेष में अविकसित कहलाकर भी अपने मुकाम पर है। अविकसित यानी आज की आधुनिक जीवन पद्धति की तुलना में। लोक संस्कृति सीधे-सीधे हमारे रहन-सहन , वेशभूषा, कला, संगीत और ऐसी ही तमाम मौलिक गतिविधियों का पर्याय है जो सैकड़ों सालों से हमारे जीवन का हिस्सा रहीं हैं। हर एक लोक संस्कृति की अपनी पहचान है, अपना दर्शन है उस पर गहन अध्ययन किया जा सकता है। इसे जानने के लिए राज्यों की लोकसंस्कृति से परिचित होना बेहद ज़रूरी हो जाता है। यह विविधता में एकता ही अपने देश को बाकियों से अलग और खास बनाती है।

प्राचीन समय से ही लोकगीत या लोक कला का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में मौखिक स्थानांतरण ही हुआ है। लोक संस्कृतियों का संग्रहण या यूं कहें कि दस्तावेज़ीकरण हमारे इतिहास में न के बराबर दिखता है। हालांकि पिछले कुछ दशकों से इसमें एक बदलाव देखा गया है। लोक संस्कृति व जनजातीय संस्कृतियों पर अध्ययन शुरू हुआ है और कुछ किताबें भी लिखी जा रही हैं लेकिन कमोबेश वें जनसामान्य की पहुंच से दूर ही हैं। बहरहाल अभी भी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है। कितना कुछ लिखा और समझा जा सकता है। क्या मालूम, तेजी से बदलती जीवनशैली व आधुनिकता के चलते कितनी लोक कथाएं, कितने लोकगीत या लोक परंपराएं हमारे दादा दादी, नाना नानी के साथ ही खत्म ही हो जाएंगे!

- रेनू सिंह

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