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गुहार

किसान खून पसीना एक करके अनाज उगाते हैं लेकिन उसका फायदा किसे हो रहा है? एक तरफ़ किसान के घरवाले कर्ज़ और गरीबी में जी रहें है, तो दूसरी ओर उनके शोषण करने वालों की तोंद निकली जा रही है. गोरख पांडे जी इस गीत के द्वारा किसानों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि दुनिया तुम्हारी उंगलियों पर टिकी हुई है. इसलिए उठो, और अपने हक की लड़ाई में शामिल हो जाओ...
सुरु बा किसान के लड़इया, चल तूहूं लड़े बदे भइया।
कब तक सुतब, मूंदि के नयनवा 
कब तक ढोवब सुख के सपनवा 
फूटलि ललकि किरनिया, चल तूहूं लड़े बदे भइया 
सुरु बा किसान के लड़इया, चल तूहूं लड़े बदे भइया ।

तोहरे पसीनवा से अन धन सोनवा 
तोहरा के चूसि-चूसि बढ़े उनके तोनवा 
तोह के बा मुट्ठी भर मकइया, चल तूहूं लड़े बदे भइया 
सुरु बा किसान के लड़इया, चल तूहूं लड़े बदे भइया ।
तोहरे लरिकवन से फउजि बनावे 
उनके बनूकि देके तोरे पर चलावें 
जेल के बतावे कचहरिया, चल तूहूं लड़े बदे भइया 
सुरु बा किसान के लड़इया, चल तूहूं लड़े बदे भइया।

तोहरी अंगुरिया पर दुनिया टिकलि बा 
बखरा में तोहरे नरके परल बा 
उठ, भहरावे के ई दुनिया, चल तूहूं लड़े बदे भइया 
सुरु बा किसान के लड़इया, चल तूहूं लड़े बदे भइया।

जनमलि तोहरे खून से फउजिया 
खेत करखनवा के ललकी फउजिया 
तोहके बोलावे दिन रतिया, चल तूहूं लड़े बदे भइया 
सुरु या किसान के लड़इया, चल तूहूं लड़े बदे भइया।

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