शादी, ब्याह, विवाह, मैरिज: शब्द तमाम हैं. पूरी दुनिया का शायद ही कोई ऐसा कोना हो जहां शादी को त्योहार के रूप में नहीं मनाया जाता हो. अब इसे या पितृसत्तावाद कहें या कुछ और, सच तो यही है कि शादी के बाद विदाई तो लड़की की ही होती है. अपने मायके में फूलों की तरह प्यार से पली बढ़ी लड़की को अचानक अपना सब कुछ छोड़ एक अनजानी जगह भेज दिया जाता है. प्रस्तुत है खड़ी हिन्दी में विदाई के वक्त गाया जाने वाला लोकगीत…
आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ
उसकी दादी ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके बाबा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया
आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ
उसकी ताई ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके ताऊ ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया
आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ
उसकी मम्मी ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके पापा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया
आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ
उसकी बुआ ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके फूफा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया
आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ
उसकी चाची ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके चाचा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया
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