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मैं झूला झूलूंगी

प्रस्तुत गीत अवधी भाषा में लिखा बारहमासा गीत है:

असाढ़ मास असाढ़ी जोग 
घर-घर मंदिर सजैं सब लोग 
चिरई चिरंगुल खोता लगाय 
हमरा बलमु परदेस में छाय 
मैं न झूलिहौं 

सावन मास में अधिक सनेह 
पिय बिन भूल्यो देह औ गेह 
पहिरी है कुसुमी उतारी है चीर 
पिया बिन सोहै न मांग सेन्दुर 
मैं न झूलिहौं 

भादौं मास रात अंधियार 
सूझै नाहीं आर और पार 
अपनी महल डरै जिया मोर 
कन्त बिना कहां पावौं ठौर 
मैं न झूलिहौं 

कुआर मास सब भरैं बखार 
पिय अगुवानी का त्योहार 
पहिरौं रंग बिरंगी चीर 
पुलकै मोरा सगरो सरीर 
अब मैं झूला झूलूंगी

अर्थ: आषाढ़ का महीना है। सब घर-घर में मंदिर सजा रहे हैं। चिड़ा-चिड़िया भी घोंसले बना रहे हैं। मेरे प्रिय परदेस में हैं, इसलिए मैं झूला नहीं झूलूंगी।
सावन का महीना तो प्रेम का महीना है। प्रियतम के बिना देह और गेह(घर) की सुध बिसर गयी है। अब तो यह लाल चुनरी भी फीकी लगती है, सो मैंने उतार दी। अपने प्रिय के बिना मुझे मांग का सिंदूर भी शोभा नहीं देता। इसलिए मैं झूला नहीं झूलूंगी।
भादों की महीने की घुप्प अंधेरी रातों में कुछ सूझ नहीं रहा। मुझे अपने ही महल में डर लग रहा है। प्रियतम के बिना मेरा कहां ठौर ? इसलिए मैं झूला नहीं झूलूंगी। 
क्वार महीने में सारे बखार अनाजों से भर गए हैं, अब मेरे प्रियतम के आने का समय आ गया है। अब मैं रंग-बिरंगी चूनर पहनूंगी। अब मैं झूला झूलूंगी।

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