पर्वतीय लोक जीवन में प्रकृति के समस्त पेड़ पौधों, फूल पत्तियों और जीव जन्तुओं के प्रति गहरा सम्मान का भाव समाया हुआ है। खासकर फूलों के लिए तो यह भाव बहुत पवित्र है। उत्तराखंड के कई लोकगीत भी इसकी पुष्टि करते हैं। बसन्त ऋतु में खिलने वाले पंय्या या पदम के पेड़ों को गढ़वाल में काफ़ी शुभ माना जाता है और इसे देवताओं के वृक्ष की संज्ञा दी जाती है। पंय्या का नया पेड़ जब जन्म लेता है तो लोग प्रसन्न होकर यह गीत गाते हैं-
नई डाळी पैय्यां जामी, देवतों की डाळी
हेरी लेवा देखी ले नई डाळी पैय्यां जामी
नई डाळी पैय्यां जामी,क्वी चौंरी चिण्याला
नई डाळी पैय्यां जामी,क्वी दूद चरियाळा
नई डाळी पैय्यां जामी,द्यू करा धुपाणो
नई डाळी पैय्यां जामी,देवतों का सत्तन
नई डाळी पैय्यां जामी,कै देब शोभलो
नई डाळी पैय्यां जामी,छेतरपाल शोभलो
अर्थ: पंय्या का छोटा सा नया पेड़ उग आया है। इसके दर्शन कर लो, यह देवताओं का पेड़ है। कोई इसकी चहारदीवारी बनाओ, कोई इसे दूध से सींचो और कोई दिया बाती धूप आदि से इसकी पूजा करो। देवताओं के पुण्य से पंय्या का नया पेड़ उगा है। यह पेड़ तो क्षेत्रपाल देवता को शोभयमान होगा।
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