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आइल बसंत के फूल रे

सावन-भादों के महीने में प्रकृति का सुंदर और मनमोहक रूप चारों ओर दिखाई देने लगता है. नवविवाहिताएँ अपने अपने मायके आती हैं. युवतियाँ हर्षित हो जाती हैं. पेड़ों पर झूले पड़ते हैं. बरसात से पूरी धरती हरी-भरी हो उठती है. नदियाँ पूरे उमंग में बहती हैं. त्योहारों की फसलें भी उग आती हैं। सबके चेहरे चमक-दमक उठते हैं। प्रस्तुत है आपके समक्ष सावन में गए जाने वाली ये कजरी जिसमें यह भाव बड़ी सुंदरता से व्यक्त हुआ है...


आइल बसंत के फूल रे, सुनुरे सखिया ।
सरसों सरसाइल
अलसी अलसाइल
धरती हरसाइल
कली-कली मुसुकाइल बन के फूल रे, सुनु रे सखिया ।।

आइल...
खेत बन रँग गइल
तन मन रँग गइल
अइसन मन भइल
जइसे इंद्रधनुष के फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...

अँखिया कजराइल
सपना मुसुकाइल
कंठ राग भराइल
बगिया फूलल यौबन फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...

बहे मस्त बयार,
झर-झर झरे प्यार
रंग गइल तार-तार
हर मनवा गुलाब के फूल रे, सुनु रे सखिया ।।
आइल...

बगिया मुसुकाइल 
कली-कली चिटकाइल
भौंरा दल दौड़ि आइल
गौरैया के माथे करिया फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...

आँख चुभे कजरा
काँट भये सेजरा
आँसु भिगे अँचरा
पिया बो गये बबूल के फूल रे, सुनुरे सखिया ।।
आइल...

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