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टूटे बाजूबंद री लूम, लड़ उलझी उलझी जाए...

हवा का बहना तन और मन दोनों को सुकून दे जाता है. पर राजस्थान में कभी यूं भी होता है कि गर्मियों में लू के थपेड़े जब लग रहे हों तो वो स्वाभाविक है कि उतने मनोरम नहीं लगते. कुछ ऐसी ही चलती हुई हवा का वर्णन इस लोकगीत में किया गया है. इसमें नायिका बताती है कि हवा चलने से उसका श्रृंगार और आभूषण तो अस्त व्यस्त हो ही रहे हैं, पर साथ ही ये पवन के झौंके उसे घर जाने की याद भी दिला रहे हैं. उसके बाजूबंद की लूम टूट गयी हैऔर उलझ रही है. जैसे जैसे हवा चलती है, उसका सतरंगी लहरिया वाला दुपट्टा भी उड़ रहा है...

टूटे बाजूबंद री लूम, लड़ उलझी उलझी जाएम्हारे पचरंगी लहेरिया को पल्लो लेहेराए - २

धीरे झालो रे बावरिया, हौले हालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए

धीरे झालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए

१.
लागी प्यारी फुलवारी आतो झूम -२ गाए - २
लाइ गोरी रो संदेशो घर आओनी सजन - २
बैरी आसुंरा रो हार बिखर नहीं जाए - २
कोई चवरी की चुनरी रे साल पद जाए - २
धीरे झालो रे बावरिया, हौले हालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए
धीरे झालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए

टूटे बाजुडा री लूम, लड़ उलझी उलझी जाए
टूटे बाजूबंद री लूम, लड़ उलझी उलझी जाएकोई पचरंगी लहेरिया को पल्लो लेहेराए - २धीरे झालो रे बावरिया, हौले हालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए
धीरे झालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए

२.
आई बिरखा री रुत, झूमे सुरियो पवन - २
लाइ सपनो सुहाग बाजे हिवडे रो तार - २
म्हारे नथनी रो मिति बिखर नहीं जाए - २
म्हारे पचरंगी लहेरिया को पल्लो लेहेराए - २धीरे झालो रे बावरिया, हौले हालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए
धीरे झालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए

टूटे बाजुडा री लूम, लड़ उलझी उलझी जाए
टूटे बाजूबंद री लूम, लड़ उलझी उलझी जाएकोई पचरंगी लहेरिया को पल्लो लेहेराए - २धीरे झालो रे बावरिया, हौले हालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए
धीरे झालो रे बावरिया, झालो सहयो नहीं जाए.

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