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दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी

लड़का लड़की के बीच भेदभाव, समाज की सबसे बड़ी कुरीतियों में से एक है. कमोबेश हर संस्कृति में यह किसी न किसी रूप में देखने को मिल ही जाता है. यही भेदभाव आगे चलकर कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों का रूप ले लेता है. प्रस्तुत है भोजपुरी का एक लोकगीत जिसमें एक बेटी इसी भेदभाव पर चोट करती हुई अपने पिता से बात कर रही है...


एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के जनम में त सोहर गवईल अरे सोहर गवईल
हमार बेरिया, काहे मातम मनईल हमार बेरिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के खेलाबेला त मोटर मंगईल अरे मोटर मंगईल
हमार बेरिया, काहे सुपली मऊनीया हमार बेरिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के पढ़ाबेला स्कूलिया पठईल अरे स्कूलिया पठईल
हमार बेरिया, काहे चूल्हा फूँकवईल हमार बेरिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के बिआह में त पगड़ी पहिरल अरे पगड़ी पहिरल
हमार बेरिया, काहे पगड़ी उतारल हमार बेरिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया
दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया

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