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Showing posts from February, 2021

जल बिन माछरिया

शादी, ब्याह, विवाह, मैरिज: शब्द तमाम हैं. पूरी दुनिया का शायद ही कोई ऐसा कोना हो जहां शादी को त्योहार के रूप में नहीं मनाया जाता हो. अब इसे या पितृसत्तावाद कहें या कुछ और, सच तो यही है कि शादी के बाद विदाई तो लड़की की ही होती है. अपने मायके में फूलों की तरह प्यार से पली बढ़ी लड़की को अचान…

मैं झूला झूलूंगी

प्रस्तुत गीत अवधी भाषा में लिखा बारहमासा गीत है: असाढ़ मास असाढ़ी जोग  घर-घर मंदिर सजैं सब लोग  चिरई चिरंगुल खोता लगाय  हमरा बलमु परदेस में छाय  मैं न झूलिहौं  सावन मास में अधिक सनेह  पिय बिन भूल्यो देह औ गेह  पहिरी है कुसुमी उतारी है चीर  पिया बिन सोहै न मांग सेन्दुर  मैं न झ…

दू रंग नीतिया काहे कईल हो बाबू जी

लड़का लड़की के बीच भेदभाव, समाज की सबसे बड़ी कुरीतियों में से एक है. कमोबेश हर संस्कृति में यह किसी न किसी रूप में देखने को मिल ही जाता है. यही भेदभाव आगे चलकर कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों का रूप ले लेता है. प्रस्तुत है भोजपुरी का एक लोकगीत जिसमें एक बेटी इसी भेदभाव पर चोट…

फूलदेई

उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में फूलों का त्यौहार फूलदेई या फुलसंग्राद बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है। फूलदेई बसन्त ऋतु में चैत्र संक्रान्ति को नये वर्ष के आगमन पर खुशी प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। गढ़वाल में कई गांवो में यह त्योहार पूरे महीने चलता है। एक स्वर में जब बच्चे फूलदेई से जु…

नई डाळी पैय्यां जामी

पर्वतीय लोक जीवन में प्रकृति के समस्त पेड़ पौधों, फूल पत्तियों और जीव जन्तुओं के प्रति गहरा सम्मान का भाव समाया हुआ है। खासकर फूलों के लिए तो यह भाव बहुत पवित्र है। उत्तराखंड के कई लोकगीत भी इसकी पुष्टि करते हैं। बसन्त ऋतु में खिलने वाले पंय्या या पदम के पेड़ों को गढ़वाल में काफ़ी शुभ माना …

तू हऊ परायाधन

प्रस्तुत गीत विवाह के बाद विदाई के समय गाया जाने वाला गीत है. इसमें लड़की अपने पिता से पूछ रही होती है कि "आप उसे है क्यों हार आएं? क्यों उसे है घर से विदा किया जा रहा है? अपने महल, अपने बेटे, गाय भैंस को क्यों नहीं हार कर विदा कर रहे हैं?" इसपर पिता रोते हुए जवाब देता  है, &quo…

बैल से बछिया न जोरहु बाबा

बाल विवाह वर्षों से चली आ रही कुरीति है. कई समाज सुधारकों के प्रयासों एवं सरकार द्वारा तमाम कानून पारित करने और जागरूकता अभियानों के चलाए जाने के बाद भी हिन्दुस्तान की 26.8% लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण). पेश है आपके समक्ष बाल विव…

मेहँदा बोवन मैं गई....

भारतीय संस्कृति में सब कुछ बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। चाहे वो कोई त्योहार हो या कोई उत्सव का कोई विवाह व जन्म आदि से संबंधित पर्व। विवाह की एक रस्म में ही न जाने कितनी रस्में होती हैं और उनमें प्रत्येक रस्म के अलग अलग गीत हैं। उनमें से ही एक मेहंदी गीत यह है जिसमें मेहंदी के उ…

पंखिडा रे उड़ी जाजे पावागढ़ रे

गरबा डांडिया गुजरात के प्रसिद्ध नृत्य शैली है।नवरात्रि में गरबा जब किया जाता है तो प्रारम्भ देवी के भजन से किया जाता है। यह प्रसिद्ध भजन पावागढ़ वाली देवी को आह्वान करते हुए गाया जाता है। पंखिडा रे उड़ी जाजे पावागढ़ रे पंखिडा रे उडी ने जाजो पावागढ़ रे मारी महाकाली ने जै ने कह्जो गरबे र…

एक बार आओजी जवाईजी पावणा

राजस्थानी घर परिवारों में 'जंवाई सा' मतलब दामाद का अलग ही महत्व होता है। उनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखी जाती। 'जंवाई' जी को घर बुलाने के लिए प्रयत्न करते एक गीत जिसमे अलग अलग परिजन उन्हें बुलाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन 'जंवाई सा' सिर्फ अपनी 'लाडी' …

आइजो जी घुमेरदार लंजो..

पति और पत्नी जीवन की इस यात्रा में एक दूसरे के सुख और दुख के साथी होते हैं। इस यात्रा में कभी बसंत होता है तो कभी पतझड़ के दिन। हंसना रोना, रूठना मनाना प्रेम के ही रूप हैं। एक पत्नी किस तरह हक़ से अपने पति से श्रृंगार की वस्तुओं की मांग कर रही है, इसका सुंदर वर्णन इस लोक गीत में किया गया है…

कोऊ दिन उठ गयो मेरा हाथ

किसी ने सही ही कहा है, 'लड़की जो भड़की तो बिजली कड़की...' एक दुल्हन अपने पति को धमकी देते हुए कहती है कि उसे गुस्सा ना दिलाना! गुस्सा दिलाने पर वो क्या क्या कर सकती है, इसी को इस ब्रज लोकगीत में बयां किया गया है... कोऊ दिन उठ गयो मेरा हाथ बलम तोहे ऐसा मारूँगी ऐसा मारूँगी बलम तोहे …

मोरनी

एक छोटी बच्ची बड़ी परेशान बैठी है. पास के जंगल के एक मोर की सुंदरता से मुग्ध उस लड़की का सुख-चैन-नींद सब उड़ गया है. मां और उसकी बच्ची के संवाद को दर्शाता यह हिमाचली लोकगीत... अम्मा पुछदी सुण धिये मेरिये धूभरी इतणी तू किया करिया होये पारली वणीया मोर जो बोले हो अम्माजी इन मोर न…

जय जय राजस्थान

राजस्थान का इतिहास और संस्कृति काफ़ी समृद्ध है. पुष्कर से लेकर अजमेर शरीफ जैसे तीर्थ स्थल हों या फ़िर प्रतापी राणा प्रताप या मीराबाई जिनपर सारा राजस्थान गर्व करता है. राजस्थान की शान यही नहीं रुकती, आख़र  क्या क्या बातें हैं जो राजस्थान की धरा को ख़ास बनाती है? जानने के लिए पढ़ें यह राजस्…

सावन आइ गये मनभावन

एक औरत अपनी सखियों से बसंत ॠतु के आने से खिल उठी प्रकृति की सुंदरता को बताती है. सरसों का सरसना हो या अलसी का अलसाना. चाहे धरती का हरसाना हो या फ़िर कलियों का मुस्काना. खेत, तन और मन का इंद्रधनुष की तरह रँगना, आँखों का कजराना, बगिया का खिल उठना, और अंत में वियोग की स्थिति इस लोकगीत में व…

आइल बसंत के फूल रे

सावन-भादों के महीने में प्रकृति का सुंदर और मनमोहक रूप चारों ओर दिखाई देने लगता है. नवविवाहिताएँ अपने अपने मायके आती हैं. युवतियाँ हर्षित हो जाती हैं. पेड़ों पर झूले पड़ते हैं. बरसात से पूरी धरती हरी-भरी हो उठती है. नदियाँ पूरे उमंग में बहती हैं. त्योहारों की फसलें भी उग आती हैं। सबके चेहर…

जैकर समय बिगड़ गई

समय बहुत बलवान है भाई. चाहे कितना भी पैसा - सोना ले आओ, बीता हुआ समय वापिस नहीं आता. समय का चक्र जब चलता है तो भगवान का दर्जा प्राप्त महापुरुषों को भी तमाम मुश्किलें झेलनी पड़ जाती है. समय की इसी महत्ता को दर्शाता ये भोजपुरी लोकगीत... जैकर समय बिगड़ गई दुनिया मारे ताना जैकरे …

बेटी विलाप

लड़की का जन्म लेना, घर में बोझ के समान माना जाता रहा है. हिन्दुस्तान के कई हिस्सों में गरीब घर की लड़कियों को रईस उम्रदराज व्यक्ति के हाथों शादी के नाम पर बेच दिया जाता था. इस प्रकार का शोषण दृश्य अदृश्य प्रकार से आज भी कई जगहों में व्याप्त है . भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी …

टूटे बाजूबंद री लूम, लड़ उलझी उलझी जाए...

हवा का बहना तन और मन दोनों को सुकून दे जाता है. पर राजस्थान में कभी यूं भी होता है कि गर्मियों में लू के थपेड़े जब लग रहे हों तो वो स्वाभाविक है कि उतने मनोरम नहीं लगते. कुछ ऐसी ही चलती हुई हवा का वर्णन इस लोकगीत में किया गया है. इसमें नायिका बताती है कि हवा चलने से उसका श्रृंगार और आभूषण…

गीत क्रांति के

विकास की राह में चलती गाड़ी के नीचे सबसे ज़्यादा संख्या में जिनका जीवन आया है वो हैं आदिवासी. झारखण्ड की धरती खनिज सम्पदा से परिपूर्ण होने के कारण हमेशा से ही भारत के लिए महत्वपूर्ण रही है. इतनी भरी पूरी होने के बावजूद भी झारखण्ड राज्य का विकास आशानुरूप नहीं हुआ है. उल्टे प्रा…

पिताजी काहे को (बिदाई गीत)

विवाह समाज में बहुत धूमधाम से मनाई जाने वाली रीत है. खुशियों का माहौल बना रहता है. लेकिन बचपन से मां- बाप के लाड़ प्यार से पली बढ़ी लड़की के लिए अपना मायका छोड़कर ससुराल के लिए विदा होना बहुत पीड़ादायक होता है. पेश है आपके सामने भोजपुरी में गाया जाने वाला यह गीत, जिसमें लड़की विदाई के दौर…

अघोषित उलगुलान

विकास के नाम पर विस्थापन नई बात नहीं है। जल जंगल जमीन का टूटना और विस्थापितों की ज़िंदगियों में मुश्किलों का आना जारी है। एक के बाद एक नई समस्याएं आ रही हैं। सब कुछ नष्ट हो रहा है। विस्थापितों की अपनी ज़मीनों में बाहर से आए लोग बस जाते है और वे बेचारे अपने ही क्षेत्र में पराए... इसी परिस्…